किशोर कुमार
भारत में गैंग रेप की घटनाएं अब चौंकाती नहीं। चेताती जरूर हैं। सरकार इस समस्या से निपटने के लिए कानून बनाती जाती है। पर “ज्यों-ज्यों दवा की, मर्ज बढ़ता ही गया” वाली कहावत चरितार्थ होती है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों में ‘गैंगरेप’ का किसी भी रूप से कोई जिक्र नहीं होता। बेंगलुरू स्थित नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया में क्रिमिनोलॉजी एंड विक्टिमोलॉजी के प्रोफेसर के. चोकलिंगम का बयान हमें याद है। उन्होंने कहा था, ”हमें आंकड़े चाहिए, अपराधियों की प्रोफाइल चाहिए, लेकिन भारत में ऐसा कुछ भी नहीं है।” पर इतना तय है कि गैंग रेप की घटना तेजी से बढ़ रही है। भारत के योगी चीख-चीख कर कहते रहे हैं कि केवल कानून बनाने से बात नहीं, बल्कि योग से बात बनेगी। जब बच्चे सात-आठ साल के हो जाएं, तभी उनमें योगाभ्यास की आदत डालनी होगी। यह विज्ञानसम्मत और आजमाया हुआ उपाय है।
कोलकाता में मेडिकल छात्रा के साथ बलात्कार और नृशंस हत्या का मामला हो या आंध्र प्रदेश के नांदयाल जिले की घटना, ये दोनों ही बेहद डरावने हैं। कोलकाता की घटना को तो मंजे हुए अपराधियों ने अंजाम दिया। पर आंध्र प्रदेश की घटना बच्चों की करतूत थी। दस-बारह साल के तीन बच्चों ने किसी मंजे हुए अपराधी की तरह आठ साल की बच्ची के साथ गैंग रेप करके उसकी हत्या कर दी। फिर साक्ष्य मिटाने के लिए शव को नदी में फेंक दिया और चेहरे पर शिकन तक नहीं। जरा सोचिए कि किस तरह के समाज का निर्माण हो रहा है। हमने इसे खतरे की गंभीर चेतावनी की तरह नहीं लिया तो भविष्य में स्थिति भयावह होती जाएगी। हिंसक प्रवृत्तियों के साथ विकसित होते बच्चे किस तरह के समाज का निर्माण करेंगे, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। हम सहज उपलब्ध संचार माध्यमों से लेकर समाज में विकसित हो रही तमाम तरह की कुरीतियों को इस स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहरा सकते हैं। पर इससे समस्या का समाधान तो नहीं होगा। आईए, योग के आलोक में एक बार फिर इसी विषय पर मंथन करते हैं।
योगियों के अनुभव और वैज्ञानिक अनुसंधानों पर गौर करें तो पता चलता है कि सारी फसाद की जड़ में पीनियल ग्रंथि है, जिसका प्रतिगमण होते ही समस्या खड़ी हो जाती है। यह ग्रंथि दोनों भौहों के बीच यानी भ्रू-मध्य के ठीक पीछे मस्तिष्क में अवस्थित रहती है। अनुसंधानों से पता चल चुका है कि लगभग आठ साल की उम्र के बाद ही पीनियल ग्रंथि कमजोर होने लगती है। बुद्धि और अंतर्दृष्टि के मूल स्थान वाली यह ग्रंथि किशोरावस्था में अक्सर विघटित हो जाती है। परिणामस्वरूप उस ग्रंथि के भीतर की पीनियलोसाइट्स कोशिकाओं से मेलाटोनिन हार्मोन बनना बंद हो जाता है। इसका सीधा संबंध यौन परिपक्वता से है। इस पर बड़े-बड़े शोध हुए हैं। देखा गया है कि इस ग्रंथि का विघटन शुरू होते ही अनुकंपी (पिंगला) और परानुकंपी (इड़ा) नाड़ी संस्थान के बीच का संतुलन बिगड़ने लगता है।
नतीजतन, पिट्यूटरी ग्रंथि से हार्मोन का रिसाव शुरू होकर शरीर के रक्त प्रवाह में मिलने लगता है। पीनियल और पिट्यूटरी, इन दोनों ग्रंथियों का परस्पर गहन संबंध है। सच कहिए तो पीनियल ग्रंथि पिट्यूटरी ग्रंथि के लिए ताला का काम करती है। ताला खुलते ही पिट्यूटरी अनियंत्रित होती है और बाल मन में उथल-पुथल मच जाता है। समय से पहले अंगों का विकास होने लगता है और यौन हॉरमोन क्रियाशील हो जाता है। कामवासन जागृत हो जाती है। यह काम ऐसे समय में होता है, जब बच्चे मानसिक रूप से इसके लिए तैयार नहीं होते हैं। लिहाजा वे अपने को संभाल नहीं पातें। इसके कुपरिणाम कई रूपो में सामने आते हैं। पीनियल ग्रंथि को आमतौर पर शीर्ष ग्रंथि कहा जाता है। तंत्र शास्त्र में इसे ही आज्ञा-चक्र कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों में इसे तीसरा नेत्र कहा गया है। पिट्यूटरी ग्रंथि को पीयूष ग्रंथि भी कहा जाता हैं।
बिहार योग परंपरा के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती एक ऐसे योगी हुए, जिन्होंने बच्चों की योग शिक्षा पर सर्वाधिक काम किया। योग विधियां विकसित की और उनका प्रभाव जानने के लिए देश-विदेश में वैज्ञानिक अध्ययन किया। वे कहते थे, हमें बच्चों की समस्याओं को नैतिकता के प्रकाश में व्याख्या करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यह पूरी तरह मनोवैज्ञानिक समस्या है। उदाहरण के लिए, यदि अधिवृक्क स्राव की अधिकता है, तो बच्चा डर से भरा होगा। वह कठिन व्यक्तियों का सामना करने में सक्षम नहीं होगा और यदि स्कूल में उसका शिक्षक सख्त है, तो वह हमेशा डरा हुआ रहेगा। हमें केवल अधिवृक्क यानी एड्रीनल स्राव को संतुलित करने की आवश्यकता है और हम निश्चित रूप से बच्चे के चरित्र को बदल सकते हैं। जो लोग बच्चों की समस्याओं को हल करने में रुचि रखते हैं, उन्हें सिस्टम में हार्मोन की भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करना होगा। थायरॉयड और अधिवृक्क हार्मोन के बीच असंतुलन के कारण भी समस्याएं होती हैं।
सवाल है कि इस समस्या के निपटने का यौगिक समाधान क्या है? सात से चौदह वर्ष तक के बच्चों को ध्यान में रखते हुए बाल योग मित्र मंडल के बैनर तले अद्वितीय योग आंदोलन का शंखनाद करने वाले बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं कि यौगिक उपाय तो एक नहीं, अनेक हो सकते हैं। पर बच्चे प्रारंभ में सूर्य नमस्कार, नाड़ीशोधन प्राणायाम, गायत्री मंत्र जप और त्राटक का अभ्यास नियमित रूप से करने लगें तो अनुकंपी (पिंगला) और परानुकंपी (इड़ा) नाड़ी संस्थान के बीच का संतुलन बना रहेगा। सूर्य नमस्कार (एक गतिशील योग व्यायाम), नाड़ीशोधन प्राणायाम (पीनियल ग्रंथि को स्वस्थ रखने हेतु) और गायत्री मंत्र का पाठ (बच्चे के विचलित मन को चुनौती देने के लिए) की वैज्ञानिकता और उसके लाभों के बारे में अक्सर चर्चा होती रहती है। पर, शांभवी मुद्रा का अभ्यास – भौंहों के केंद्र पर आँखों की एकाग्रता – भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसके अभ्यास से पीनियल ग्रंथि को बनाए रखने में कुछ ज्यादा ही मदद मिलती है। क्यों? क्योंकि त्राटक के अभ्यास से जब हम चार्ज होते हैं तो हमारा शरीर इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फील्ड बनाता है, जो मन को नियंत्रित करने में काम आता है। कॉलेजी छात्रों को अन्य योगाभ्यासों के साथ ही शशंकासन जरूर करवाना चाहिए। क्रोध दुर्वासा ऋषि जैसा भी होगा तो शांत हो जाएगा।
ध्यान रखिए, जब प्राण-शक्ति अधिक और मन:शक्ति कम होती है तो आदमी हिंसक बनता है। योग से भावनाओं का संतुलन होता है। आज्ञा-चक्र सक्रिय होता है। संतुलित ऊर्जा वाले बच्चे अपराधी नहीं, बल्कि प्रतिभाशाली बनते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)